Monday, July 1, 2019

नई शिक्षा नीति: मोदी सरकार का हिंदी भाषा एजेंडा

सरकार हिंदी को अनिवार्य बनाने और अंग्रेजी का वर्चस्व खत्म करने के लिए नए सिरे से देश भर में मुहिम छेड़ेगी। सरकार हिंदी के पक्ष में संविधान को अपना ढाल बनाने के साथ ही संदेश देगी कि उसका लक्ष्य क्षेत्रीय भाषाओं को कमजोर करने के बदले उन्हें और मजबूत बनाना है। इस मोर्चे पर विरोध की लपटें तमिलनाडु तक सीमित रह जाने से भी सरकार का हौसला बुलंद हुआ है।

एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री के मुताबिक, हम राज्यों को समझाएंगे कि सरकार की योजना क्षेत्रीय भाषाओं के ढांचे के कमजोर करने की नहीं बल्कि इसे और मजबूत बनाने की है, क्योंकि विशेषज्ञों का भी मानना है कि नए अविष्कार, नए विचार और नई सोच पैदा करने के लिए मातृभाषा में ही छात्रों को शिक्षा देना पहली जरूरी शर्त है। 

इस कड़ी में राज्यों में उसकी क्षेत्रीय भाषा के जारी रहते अंग्रेजी की जगह हिंदी को स्थापित किए जाने में कोई परेशानी नहीं है। पहले सरकार को अंदेशा था कि त्रिभाषा फार्मूले का हिंदीपट्टी के इतर दूसरे राज्यों में तीखा विरोध हो सकता है लेकिन यह केवल तमिलनाडु तक सीमित रहा तो कर्नाटक में छिटपुट विरोध के स्वर उठे। सरकार के रणनीतिकार इसे नई शिक्षा नीति और हिंदी के लिए बेहतर अवसर के रूप में देख रहे हैं।


  प्रगति करने वाले चीन-जापान-इस्राइल ने मातृभाषा को दी पहल, अंग्रेजी पर आश्रित होने के कारण भारत में नए आविष्कारों का पड़ा टोटा |मातृभाषा के वर्चस्व के दौरान दुनिया को दिया शून्य, कई महापुरुष, कई नए विचार|अंग्रेजी ने बढ़ाई रट्टामार प्रवृत्ति | जागरूकता, राज्यों से विमर्श के जरिए आम सहमति की कोशिशों के बाद सरकार हिंदी के लिए संविधान को भी ढाल बनाने की तैयारी कर रही है। दरअसल संविधान के भाग 17 के राजभाषा चैप्टर में 343(1) क्रमांक में स्पष्ट तौर कहा गया है कि राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।


खंड दो में कहा गया है कि केंद्र और राज्य शासकीय प्रयोजनों के लिए अधिकतम 15 साल तक ही अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर सकेंगे। हालांकि इस अवधि के बीच ही राष्ट्रपति अपने आदेश से हिंदी भाषा के प्रयोग का आदेश दे सकेंगे। इसके अलावा क्रमांक 351 में हिंदी भाषा का प्रचार बढ़ाने और इसका विकास करने को संघ का कर्तव्य बताया गया है। 


हिंदी की अनिवार्यता सुनिश्चित करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध तो है, मगर हड़बड़ी में नहीं है। सरकार नहीं चाहती कि इसको लेकर कोई बड़ा विवाद खड़ा हो।सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि आजादी के 7 दशक बाद गैर हिंदी पट्टी राज्यों में हिंदी का मुखर विरोध नहीं है। इसलिए सरकार इस पर सीधा रुख अपनाने से पहले जागरूकता लाने और सहमति बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के मूड में है। 



from देश – Navyug Sandesh https://ift.tt/2XzPIfZ

No comments:

Post a Comment