बांधवगढ़ नेशनल पार्क बाघों के लिए मशहूर है। यह उमरिया रेलवे स्टेशन से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां से लोकल बस के जरिए आसानी से बांधवगढ़ तक पहुंचा जा सकता है। अक्सर लोग बांधवगढ़ को जंगल और बाघों के नाम से जानते हैं। पर बांधवगढ़ का इतिहास से गहरा संबंध है। बांधवगढ़ के जंगल सफारी का गेट 3:00 बजे खुलता है। शाम 3:00 बजे सफारी के जरिए जंगल की यात्रा करवाई जाती है।
बांधवगढ़ बाघों के साथ-साथ वहां के लोकल लोगों की आस्था का केंद्र भी है। बांधवगढ़ पार्क में घुसते ही एक छोटा सा मंदिर दिखाई देता है। जिसमें शिवलिंग की प्रतिमा स्थापित है। वहां के लोकल लोगों का कहना है कि यहां इस शिवलिंग के पास एक सिद्ध बाबा रहते हैं। यह स्थान इतना पवित्र बताया जाता है कि कभी भी कोई भी टाइगर इस स्थान पर किसी दूसरे जानवर को नहीं मारता। बल्कि सिद्ध बाबा की कुटिया के पास बाघ और उनके बच्चे धूप सेकते नजर आते हैं।
बांधवगढ़ किलाः
शिवलिंग से आगे जाने पर चक्रधारा मैडोज दिखाई देता है जहां से बांधवगढ़ किला नजर आता है। यह किला बांधवगढ़ पठार पर बना हुआ है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने इसके लिए को अपने भाई लक्ष्मण को भेंट स्वरूप दिया था। बांधों का मतलब भाई से है और गढ़ का मतलब किले से, यही से इसका नाम बांधवगढ़ पड़ा। किले के अंदर जाने पर भगवान विष्णु की बड़ी लेटी हुई प्रतिमा दिखाई देती है जिससे शेस सैया कहा जाता है। साल में एक बार जन्माष्टमी के मौके पर यहां पर बड़ा मेला लगता है।
विष्णु की शेश सैया मूर्ति चट्टानों को काटकर बनाई गई है और इसे 2000 साल पुराना बताया जाता है। मूर्ति को देख कर आपको थाईलैंड की बुद्ध की मूर्ति याद आ जाएगी।
इस तरह से बांधवगढ़ आस्था और इतिहास तथा बाघों के लिए प्रसिद्ध है। इन तीनों को एक साथ देखने के लिए बांधवगढ़ की यात्रा पर जाना सबसे अच्छा है।
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