Thursday, August 16, 2018

न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेद आए सामने

पिछले कई महीनों से देश की सर्वोच्च अदालत में चले लंबे विवादों के बाद अब सब कुछ सामान्य होता जा रहा है। लेकिन, अब ऐसा लगता है सरकार और न्यायपालिका के बीच भी कुछ मतभेद हैं, जो अभी खुलकर सामने नहीं आए हैं लेकिन, ऐसा लगता है कि सरकार और ज्यूडिशियल सिस्टम के बीच एक लकीर खिंची हुई है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि देश की शीर्ष अदालत उच्चतम न्यायालय में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के भाषण से यह बात सामने आई है।


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स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाषण देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि हम पीआईएल का सम्मान करते हैं, लेकिन, अदालत को उनको अपना काम करते रहने देना चाहिए जो चुनी हुई सरकार में बैठे हैं या चुनकर आए हैं। कोर्ट को जब दखल देना चाहिए जब वह कुछ गलत करें।

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हालांकि, उन्होंने साफतौर पर नहीं कहा लेकिन, उन्होंने कुछ पीआईएल को राजनीति से प्रेरित होने का भी इशारा दिया। सुप्रीम कोर्ट के चार जजों के सार्वजानिक रूप से प्रेस वार्ता करने वाले विवाद पर भी प्रसाद ने कहा कि मामला सार्वजानिक होने के बाद भी हमने न्यायपालिका के काम काज में दखलअंदाजी नहीं की।

जबकि अपने भाषण में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मैं कानून मंत्री की बातों से सहमत नहीं हू्ं। जिन लोगों ने आजादी की लडाई लड़ी उन्होंने आपकी प्रशंसा पाने के लिए ये नहीं किया। वो अपने देश और अधिकारों के लिए लड़े। दरअसल, समारोह की शुरुआत में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, कोर्ट में भीड़ बढ़ती जा रही है। रोज सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में धक्का-मुक्की होती है। महिला वकीलों को ज़्यादा परेशानी होती है।

अपने सुझाव देते हुए उन्होंने कहा, सरकार, जजों और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को इस बारे में सोचने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट में अहम मुकदमों की लाइव स्ट्रीमिंग पर भी बात हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की बड़ी इमारत और बड़े कोर्ट रूम होने ज़रूरी हैं।

अगर इलेक्ट्रिक वाहन हों, तो जब केस आने वाला हो, तो वकील और मुवक्किल कोर्ट रूम तक पहुंच जाएं, लेकिन ये सब बहुत खर्चीला है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के चार जजों जस्टिस चेलेमेश्वर, जस्टिस गोगोई, जस्टिस लोकुर और जस्टिस कुरियल जोसेफ ने एक प्रेस कॉन्फे्रंस कर सीजेआई पर बेंचों को केस बांटने और पीआईएल सुनने को लेकर कई आरोप लगाए थे।

इन जजों ने आरोप लगाए थे कि सीजेआई अपनी मनपसंद बेंचों को स्पेशल केस देते हैं। इसके बाद पूरे देश में न्यायपालिका के अंदर के मतभेद सार्वजानिक रूप से सामने आए थे। हालांकि, इस मामले में सरकार ने दखल देने से इंकार कर दिया था।

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