दशहरा पर हुए पंजाब के अमृतसर में रेल हादसे को लेकर ट्रेन ड्राइवर के दावे पर सवाल खड़े हो गए हैं। ड्राइवर ने कहा था कि उसने ट्रेन को इसलिए नहीं रोका क्योंकि रावण दहन को देखने जुटी भीड़ में से कुछ लोग ट्रेन पर पत्थर फेंक रहे थे।पर एक चश्मदीद शैलेंदर सिंह शैली ने कहा, ‘मैं घटनास्थल पर मौजूद था। रुकने की तो बात ही छोड़िए, ट्रेन की रफ्तार भी धीमी नहीं हुई। ट्रेन वहां से चंद सेकेंडों में गुजर गई। जब हम लोगों के आस-पास इतने सारे लोग मर रहे हों या घायल हों तो हम ट्रेन पर पत्थर फेंकेंगे ? ड्राइवर झूठ बोल रहा है।’
ड्राइवर ने कहा है कि लोगों को ट्रैक से हटाने के लिए उसने लगातार हॉर्न दिया। लेकिन जब ट्रेन लगभग रुकने वाली थी तो लोगों ने पथराव शुरू कर दिया इसलिए यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसने ट्रेन को अमृतसर की ओर बढ़ाया। अधिकारियों का कहना है कि इस ट्रेन का अगर ब्रेक लगाए जाएं तो सवारियों से भरी होने पर 600 मीटर तक चलने के बाद रुकेगी। ट्रेन की रिकॉर्ड की गई आखिरी रफ्तार 68 किमी प्रति घंटा थी।
इस घटना में मरने वालों की संख्या बढ़ कर 62 हो गई है। इस रेल दुर्घटना से राज्य के कम से कम तीन परिवारों पर दुखों पर पहाड़ टूटा है। सर्वाधिक प्रभाव सोनबरसा गांव के दिनेश के परिवार पर पड़ा है जिनके परिवार के तीन सदस्य इस दुर्घटना में मारे गए।
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