एक रिसर्च में यह बात हमारे सामने आई है कि सप्लिमेंट विटमिन-डी की कमी को पूरा नहीं करता है। हाल ही में अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अपनी स्टडी में दावा किया है कि सप्लिमेंट के बेतहाशा इस्तेमाल से कोई खास फायदा नहीं होता।
शोधकर्ताओं ने कहा कि खासकर महिलाओं में यह बहुत कारगर साबित नहीं पाया गया। विटमिन-डी की कमी की वजह से जिन महिलाओं में ऑस्टियोपेरोसिस जैसी बीमारी देखी गई थी, उनमें विटमिन-डी सप्लिमेंट से बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ। भारतीय डॉक्टर भी इस बात से सहमत हैं। उनका कहना है कि विटमिन-डी की कमी जितना सूरज की रोशनी से पूरा हो सकता है, उतना फायदा सप्लिमेंट से कभी नहीं हो सकता। सूरज की रोशनी से बचने वाले लोग विटमिन-डी सप्लिमेंट का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन सप्लिमेंट विटामिन-डी की कमी को कभी पूरा नहीं करता।
मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशिऐलिटी हॉस्पिटल के आर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट के डायरेक्टर ने बताया कि हाल के सालों में ऑस्टियोपेरोसिस की चपेट में आने वाले मरीजों की औसत उम्र बहुत घटी है, क्योंकि उनमें विटमिन-डी की कमी को पूरा नहीं किया जा पा रहा है। डॉक्टर ने कहा कि 50 साल से अधिक उम्र की हर तीन में से एक महिला को ऑस्टियोपेरोसिस का गंभीर खतरा रहता है।
उन्होंने कहा कि महिलाओं में देखा गया है कि वे सूरज की रोशनी में बहुत कम रहती हैं। जब धूप में जाती भी हैं, तो उनके शरीर का अधिकांश हिस्सा ढका रहता है। इसी वजह से शरीर को जितना एक्सपोजर होना चाहिए वह उतना हो नहीं पाता। उन्होंने कहा कि मानव शरीर खुद से भी विटमिन-डी बनाता है, लेकिन यह तभी संभव होता है जब शरीर धूप में पूरी तरह एक्सपोज हो। डॉक्टर ने कहा कि नैचरल तरीके से विटमिन-डी की कमी को पूरा करने के लिए हफ्ते में दो से तीन बार कम से कम 15 मिनट की धूप अवश्य लें। सुबह की धूप 7-8 बजे के बीच सबसे बेहतर होती है, क्योंकि उस समय पलूशन लेवल बहुत कम होता है।
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