आजकल के समय में कंप्यूटर सभी के जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। इसके बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता है चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी। आज प्राय: हर घर में आपको कम्प्यूटर और प्रिंटर अवश्य मिलेगा। आप भी सोच में पड़ गए होंगे कि इसमें आखिर नई बात कौन सी है? नई बात है जनाब! प्रिंटर हमारी सेहत के लिए बहुत ही घातक है।
लेजर प्रिंटर तो सबसे ज्यादा खतरनाक है। इसमें स्याही की जगह महीन पाउडर वाला एक कार्टिज लगता है। आमतौर पर कार्टिज वाले पाउडर को टोनर कहते हैं। टोनर के कण इतने महीन होते हैं कि कार्टिज से बाहर वे बड़ी देर तक हवा में तैर सकते हैं। यही महीन कण सांस के रास्ते हमारे फेफड़ों तक पहुंच कर हमें बीमार कर सकते हैं।
जर्मनी की एक शोध टीम ने इसी को अपनी खोज का विषय बनाया। वह जानना चाहती थी कि टोनर से उडऩे वाले अत्यंत महीन कण जब हमारे फेफड़ों में पहुंचते हैं तो फेफड़ों पर उनका क्या असर पड़ता है? उन्होंने टोनर की धूल का फेफड़े की कोशिकाओं के कल्चर यानी संवर्ध से संपर्क कराया। नतीजा बहुत ही ज्यादा चौंकाने वाला रहा। पाया गया कि फेफड़े की कोशिकाओं को टोनर की धूल के संपर्क में लाने से उनके जीनों को काफी नुकसान पहुंचा। यह नुकसान इतना ज्यादा व्यापक और गहरा था कि हमें कहना पड़ेगा कि इससे कोशिकाओं के जीनों में म्यूटेशन पैदा होता है।
यह परिवर्तन आकस्मिक होता है और हानिकारक भी हो सकता है कि कोशिका अपनी मरम्मत ख़ुद कर ले, लेकिन यह भी हो सकता है कि कुछ कोशिकाएं मर जाएं और मवाद पैदा हो जाए। स्थिति तब और भी चिंताजनक हो सकती है, जब कोई क्षतिग्रस्त कोशिका कैंसर की कोशिका में बदल जाए और फेफड़े का कैंसर पैदा करने लगे। सुंदरमान कहते हैं कि यह एक आशंका है, जिसे गंभीरता से लेना होगा।
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