आमतौर पर जब कोई भी एथलीट या खिलाड़ी गोल्ड मेडल जीतता है तो वह सबसे पहले मैडल को दांतों से दबाता है. कई बार आपको देखकर यह मन में सवाल उठता होगा कि आखिर सभी खिलाड़ी ऐसा करते क्यों हैं? तो चलिए आज हम आपकी इस जिज्ञासा को शांत ही कर देते हैं. और आपको बताते हैं गोल्ड मैडल को चबाने के पीछे की कहानी…
गोल्ड मेडल असली है या नकली
वैसे तो अब गोल्ड मैडल को दांतों से दबाना एक प्रथा जैसी हो गई है. लेकिन इस प्रथा की शुरुआत एथेंस ओलंपिक से हुई थी. लेकिन साल 1912 के स्टॉकहोम ओलंपिक के बाद से ये अपनाई गई. दरअसल इसका चलन तब शुरु हुआ जब खिलाड़ी को गोल्ड मैडल पहनाया जाता था और खिलाड़ी उसे दांतों से दबाकर चेक करता था कि वह गोल्ड असली है या नकली.
अगर खिलाड़ी के दांतों के निशान मैडल पर बन जाते थे इसका मतलब होता था कि वह असली है और अगर नहीं बनते थे तो गोल्ड नकली है. लेकिन समय के अनुसार ये एक ट्रेंड बन गया जिसे आजतक खिलाड़ी अपना रहे हैं.
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