
कानपुर जनपद से 50 किलोमीटर दूर भीतरगांव विकासखंड मुख्यालय से 3 किलोमीटर पर बेंहटा गांव का जगन्नाथ मंदिर अनेक रहस्य समेटे है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की खासियत यह है कि बरसात से 7 दिन पहले इसकी छत से बारिश की कुछ बूंदे अपने आप ही टपकने लगती हैं।
जगन्नाथ मंदिर कितना पुराना है, इसका सटीक आकलन अभी तक नहीं हो पाया। पुरातत्व विभाग ने कई बार प्रयास किए पर तमाम सर्वेक्षणों के बाद भी मंदिर के निर्माण का सही समय पता नहीं चल सका। बौद्ध मठ जैसे आकार वाले मंदिर की दीवारें करीब 14 फीट मोटी हैं, मंदिर के अंदर भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और बहन सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां है। पूर्व मुखी द्वार के सामने प्राचीन कुंआ और तालाब भी है।
आजकल यह मंदिर पुरातत्व के अधीन है। पुरातत्व विभाग कानपुर के सहायक निरीक्षक मनोज वर्मा बताते हैं कि मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं शताब्दी के आसपास हुआ था। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के बाहर मोर का निशान और चक्र बने होने से चक्रवती सम्राट हर्षवर्धन के काल में मंदिर के निर्माण किया गया था।
चमत्कार की बात करें तो ग्रामीण बताते हैं कि बारिश होने के छह-सात दिन पहले मंदिर की छत से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं। और इतना ही नहीं जिस आकार की बूंदे टपकती हैं, उसी आधार पर बारिश होती है। अब तो लोग मंदिर की छत टपकने के संदेश को समझकर जमीनों को जोतने के लिए निकल पड़ते हैं।
हैरानी में डालने वाली बात यह भी है कि जैसे ही बारिश शुरु होती है, छत अंदर से पूरी तरह सूख जाती है। मंदिर की प्राचीनता व छत टपकने के रहस्य के बारे में, मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पुरातत्व विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक कई दफा आए, लेकिन इसके रहस्य को नहीं जान पाए हैं।भगवान जगन्नाथ का रथयात्रा उत्सव होता है। जुलाई में यहां उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर की तरह रथ यात्रा में निकलती है, जिसमें रथ खींचने और पूजा करने के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जन्माष्टमी के दौरान भी यहां भव्य मेला आयोजित होता है।
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